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भारतीय लोकतंत्र

 भारतीय लोकतंत्र एक ऐतिहासिक और संविधानिक संरचना है जो भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण है। यह एक राजनीतिक प्रणाली है जिसमें शक्ति जनता के हाथो...

 भारतीय लोकतंत्र एक ऐतिहासिक और संविधानिक संरचना है जो भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण है। यह एक राजनीतिक प्रणाली है जिसमें शक्ति जनता के हाथों में होती है और राजनीतिक निर्णय जनता के प्रतिनिधियों द्वारा लिए जाते हैं। भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र "लोक शासन, लोक कल्याण" है, जो एक सकारात्मक और समर्थनीय समाज के निर्माण का लक्ष्य रखता है।



भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला सन् 1947 में लगाई गई थी, जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी और एक संविधान बनाने का काम शुरू किया गया था। संविधान सभा ने 1950 में भारतीय संविधान को पारित किया, जिसमें भारत के लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का स्थायी आधार दिया गया। इस संविधान में नागरिकों के अधिकार, स्वतंत्रता, और समानता के प्रति प्रतिबद्धता शामिल है।

भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों में सर्वोच्चता का सिद्धांत है, जिसमें लोकतंत्र की सभी शाखाओं के लिए न्यायप्रियता और समानता की गारंटी होती है। इसके अलावा, लोकतंत्र में सरकार को जनता के समानाधिकार सुनिश्चित करने का काम होता है, और जनता की इच्छा और आवाज को समर्थित करना होता है। इस प्रणाली में न्यायपालिका, विधायिका, और कार्यपालिका तीनों अलग-अलग होते हैं, लेकिन सभी का एक ही लक्ष्य होता है - लोक कल्याण।

भारतीय लोकतंत्र का एक और महत्वपूर्ण पहलु जनभागीदारी है। इसमें लोकतंत्र के निर्माण में जनता की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा दिया जाता है। जनता को निर्वाचनों के माध्यम से सरकार का चयन करने का अधिकार होता है, और वे अपने निर्देशकों को जनता की आवाज को सुनने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं।

भारतीय लोकतंत्र के साथ-साथ संविधान ने भारतीय समाज को विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक विविधताओं को समाहित करने की क्षमता दी है। इसमें लोकतंत्र की अविनयनीय धरोहर है, जिसमें विभिन्न समुदायों और जातियों को समाहित किया जाता है, 

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